Dr Yash

जब भी कोई व्यक्ति गिरता है  तो बचाव के लिए सबसे पहले ज़मीन पर हाथ लगता है और शरीर का सारा वज़न हाथ और कलाई को सहना पड़ता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि हाथ एवं कलाई की चोट काफ़ी मात्रा में देखने में आती है वृद्धावस्था में ये मामला थोड़ा और ज़्यादा सामान्य एवं गंभीर रूप ले लेता है।

हम जानते हैं कि ज़्यों  ज़्यों हमारी उम्र बढ़ती है त्यों त्यों हमारी हड्डियां कमज़ोर होना शुरू हो जाती है । यह कितनी ज़्यादा कमज़ोर हुई है उस हिसाब से आसटिसोपीनिया या ऑस्टियोपोरोसिस की संज्ञा दी जाती है। हल्की सी चोट लगने के बाद फ्रैक्चर हो सकता है । सबसे ज़्यादा इसका प्रभाव कूलहे की हड्डी,  रीढ़ की हड्डी एवं कलाई की हड्डी मैं देखने में आता है।

कलाई एवं हाथ की चोट

कलाई एवं हाथ में विभिन्न प्रकार के फ्रैक्चर हो सकते हैं यह जानना ज़रूरी है कि कलाई का जोड़ दो बड़ी एवं  आठ छोटी छोटी हड्डियों से बना होता है। इसके आगे उंगलियों के लिए कई जोड़ और हड्डियाँ रहती है। गिरने के कारण इनमें से किसी भी हड्डी का फ्रैक्चर हो सकता है लेकिन सबसे सामान्य रूप में देखने में आता है कोलीज फ्रैक्चर।

कोलीज फ्रैक्चर ( Colles Fracture)यह फ़्रैक्चर कलाई के जोड़ से लगभग दो सेंटीमीटर ऊपर होता है क्योंकि हड्डी इस जगह पर सबसे ज़्यादा कमज़ोर होती है। फ्रैक्चर होने के बाद ज़्यादातर , हड्डी ऊपर और एक तरफ़ खिसक जाती है और देखने में खाने वाला काँटा या डिनर फ़ोर्क तरह की विकृत नज़र आती है।
कई बार इस हड्डी के दो से भी ज़्यादा टुकड़े हो जाते हैं और ज़ोड वाली तरफ़ भी प्रभावित हो जाती है।

स्वाभाविक है कि ऐसी चोट लगने के बाद आप अपने आस पास के  ऑर्थोपीडिक सर्जन यानी अस्थि शल्य विशेषज्ञ को दिखाकर उसका एक्सरे करवाएंगे । निदान अथवा डायगनोसिस होने के बाद इसके इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए। यदि बेहोश करके भी से  हड्डी को अपनी जगह पर वापस लाना आवश्यक हो तो इसे हिचकिचाना नहीं चाहिए।

यदि हड्डी अपनी जगह से ज़्यादा नहीं खिसकी है तो  बिना बेहोश किए केवल प्लास्टर लगाकर इसका इलाज किया जा सकता है। लगभग पाँच हफ़्ते तक प्लास्टर लगाने की आवश्यकता रहती है। यदि फ्रैक्चर के बाद हड्डी अपनी जगह से खिसक गई है तो कोशिश यही की जाती है कि जहाँ तक संभव हो , अपनी जगह से हटी हुई टूटी हड्डी को  पूरी तरह से वापिस अपने स्थान पर लाया जाए और उसे वहीं रोका जाए।

ऐसा करने के लिए रोगी को अस्पताल में दाख़िल करना पड़ता है और थोड़ी सी देर के लिए बेहोश करके हड्डी को अपनी जगह सेट किया जाता है हड्डी को अपनी जगह पर रोकने के लिए कई बार दो छोटी छोटी तारें  भी लगा दी जाती है ताकि वह वहाँ से न हिले। इन तारों को चार या पाँच हफ़्ते के बाद निकाल दिया जाता है इनको निकालने में कोई दिक़्क़त नहीं रहती क्योंकि इनका एक हिस्सा चमड़े के बाहरी छोड़ दिया जाता है और बिना किसी एनेस्थीसिया के इनको आराम से निकाला जा सकता है।
इसके साथ साथ पाँच हफ़्ते के लिए प्लास्टर भी लगाया जाता है।

कई बारी हड्डी अगर बहुत बुरी तरह से टूटी हो तो उसे  पूरी तरह अपनी जगह पर लाना संभव नहीं होता । उसे अच्छी से अच्छी स्थिति में लाने के लिए बेहोश करने के बाद बहार से एक खांचा या एक्सटर्नल फिकसेटर ( External Fixator) लगा दिया जाता है जिसे  पाँच या छह हफ़्ते के बाद निकाला जा सकता है कोशिश यही रहती है कि चीरा न लगाया जाये , ऑपरेशन न करना पड़े और छोटी विधि द्वारा ही इलाज संभव हो पाए। लेकिन कभी कभी इसमें प्लेट लगाने की आवश्यकता पड़ जाती है।

प्लास्टर लगने  के बाद की सावधानियां

  • यदि  उंगलियों में सूजन आ जाए /उनका रंग बदलना शुरू हो जाए / ज़्यादा तेज दर्द हो या उंगली चलाने में दिक़्क़त हो तो फ़ौरन अपने डॉक्टर से मिलें।
  • हाथ को हमेशा  ऊँचा उठाकर रखें। यदि हाथ को लटकाकर रखेंगे तो उंगलियों में सूजन आने का डर रहता है और इससे उंगलियाँ अकड़न भी आ जाती है।
  • उंगलियों को लगातार चलाते रहें । इससे खून का दौरा चलता रहता है और खून जमा नहीं होता जिससे सूजन नहीं होती और अकडन भी नहीं होती
  • कई बार यह देखा गया है कि प्लास्टर लगने के बाद बाज़ू को स्लिंग में रखने के कारण , व्यक्ति अपने कंधे और कोहनी के जोड़ों को नहीं चलाते और कंधा जाम हो जाता है। इसलिए आवश्यक है कि दिन में तीन चार बार बाजु को  स्लिंग से बाहर निकाल कर कंधे एवं  कोहनी का व्यायाम आवश्य करें ताकि वे जाम न हो जाए।

प्लास्टर उतरने के बाद की सावधानियां

  • प्लास्टर उतरने के कुछ दिन बाद भी हाथ को ऊँचा रखना चाहिए
  • हाथ की अंगुलियां चलाते  रहें
  • कोसे पानी में हाथ डालकर व्यायाम करें
  • नरम गेंद या बच्चों द्वारा  खिलौने बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विशेष प्रकार की मिट्टी से हाथों का व्यायाम करें
  • ध्यान रहे कंधे और कोहनी का व्यायाम भी लगातार करते रहे

अच्छा ये रहेगा कि अपने घर के आस पास किसी फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाकर कुछ दिन आप नियमित व्यायाम करें ताकि हाथों की उंगलियों , कलाई एवं अन्य जोड़ों में अकड़न ना रह जाए। कुछ लोगों में सूजन एवं  अकड़न ज़्यादा दिन तक रह सकती है । यह और RSD या रिफलेकस सिमपेथेटिक डिसटरोफी की वजह से हो सकता है और इसका विशेष प्रकार का इलाज करना पड़ सकता है।

कलाई एवं हाथ के अन्य फ्रैक्चर

इसी प्रकार से हाथ की छोटी हड्डियों के अन्य कई प्रकार के फ्रैक्चर हो सकते हैं और उन्हें या तो प्लास्टर या उँगलियों को एक दूसरे के साथ स्टरेपिंग करके ठीक किया जा सकता है। कुछ फ्रैक्चर ऐसे होते हैं कि उन्हें ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि ऐसा होगा तो आपके ऑर्थोपीडिक सर्जन आपको इसकी जानकारी दे देंगे बहरहाल ज़्यादातर फ्रैक्चर का इलाज बिना ऑपरेशन के किया जा सकता है इन सब फ्रैक्चर में भी ये सब सावधानियां , जो ऊपर लिखी गई हैं , का पालन करना आवश्यक है।

दो अन्य महत्वपूर्ण बातें

एक तो यह है कि वृद्धावस्था में गिरने से कैसे बचा जाए और दूसरा कनजोर हड्डी  यानी ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज साथ साथ ज़रूर किया जाए। ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए कुछ विशेष प्रकार की दवाइयां आसानी से उपलब्ध है।  अपने डॉक्टर की सलाह के बाद कैल्शियम और विटामिन D भी ज़रूर लें।

गिरने से बचाव

  • बढ़ती उम्र के साथ संतुलन कुछ कम हो सकता है। यदि ऐसा है तो चलने के लिए छड़ी इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है
  • फिसलन वाली जगह पर न चले
  • गीले फ़र्श पर न चले
  • बाथरूम में  एसी टाइल लगवाए जिससे फिसलने की संभावना कम हो और हेंड रेलिंग भी लगवाए। घर के अंदर क़ालीन एवं फ़र्नीचर इस प्रकार से रखें कि व्यक्ति का पैर न अटके ।

सार

यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार का फ्रैक्चर हो जाए तो घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है इसका इलाज बहुत सरल है और इसके परिणाम काफ़ी अच्छे हैं कुछ हफ्तों में आप अपने हाथ को पहले की तरह इस्तेमाल करने में सक्षम हो जाएंगे।

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